पृष्ठ:आकाश -दीप -जयशंकर प्रसाद .pdf/१४१

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अपराधी

वनस्थली के रंगीन संसार में अरुण किरणों ने इठलाते हुए पदार्पण किया और वे चमक उठीं, देखा तो कोमल किसलय और कुसुमों की पंखुड़ियाँ, वसंत पवन के परों के समान हिल रही थीं। पीले पराग का अङ्गराग लगने से किरणें पीली पड़ गई। वसन्त का प्रभात था।

युवती कामिनी मालिन का काम करती थी। उसे और कोई न था। वह इस कुसुम-कानन से फूल चुन ले जाती और माला बनाकर बेचती। कभी-कभी उसे उपवास भी करना पड़ता। पर, वह यह काम न छोड़ती। आज भी वह फूले हुए कचनार के नीचे

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