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आकाश-दीप
 


बैठी हुई, अर्द्ध-विकसित कामनी-कुसुमों को बिना बेधे हुए, फन्दे देकर माला बना रही थी। भँवरे आए, गुनगुना कर चले गए। वसन्त के दूतों का सन्देश उसने न सुना। मलय-पवन अंचल उड़ाकर, रूखी लटों को विखराकर, हट गया। मालिन बेसुध थी, वह फन्दा बनाती जाती थी और फूलो को फँसाती जाती थी।

द्रुत-गति से दौड़ते हुए अश्व के पद-शब्द ने उसे त्रस्त कर दिया। वह अपनी फूलों की टोकरी उठाकर भयभीत होकर सिर झुकाये खड़ी हो गई। राजकुमार आज अचानक उधर वायुसेवन के लिए आ गए थे। उन्होंने दूर ही से देखा, समझ गए कि वह युवती वस्त है। बलवान अश्व वहीं रुक गया। राजकुमार ने पूछा---"तुम कौन हो?"

कुरङ्ग-कुमारी के समान बड़ी-बड़ी आँखें उठाकर उसने कहा---"मालिन!"

"क्या तुम माला बनाकर बेचती हो?"

"हाँ।"

"यहाँ का रक्षक तुम्हें रोकता नहीं?"

"नहीं, यहाँ कोई रक्षक नहीं है।"

"आज तुमने कौन-सी माला बनाई है?"

"यही कामिनी की माला बना रही थी।"

"तुम्हारा नाम क्या है?"

"कामिनी।"

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