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आकाश-दीप
 


झाड़ियों में बिहार करते थे, अब एक जंगल हो गया। अब राजकुमार वहाँ नहीं आते थे। अब वे स्वयं राजा हैं। सुकुमार पौदे सूख गए। विशालकाय वृक्षों ने अपनी शाखाओं से जकड़ लिया। उस गहन वन में एक कोने में पर्णकुटी थी, उसमें एक स्त्री और उसका पुत्र, दोनों रहते थे।

दोनों बहेलियों का व्यवसाय करते; उसीसे उनका जीवन-निर्वाह होता! पक्षियों को फँसा कर नागरिकों के हाथ वह बालक बेचा करता। कभी-कभी मृग-शावक भी पकड़ ले जाता।

एक दिन वन-पालिका का पुत्र एक सुन्दर कुरङ्ग पकड़ कर नगर की ओर बेचने के लिए ले गया। उसके पीठ पर बड़ी अच्छी बूटियाँ थी। वह दर्शनीय था। राजा का पुत्र अपने टट्टू पर चढ़ कर घूमने निकला था, उसके रक्षक साथ थे। राजपुत्र मचल गया। किशोर मूल्य माँगने लगा। रक्षकों ने कुछ देकर उसे छीन लेना चाहा। किशोर ने कुरङ्ग का फन्दा ढीला कर दिया। वह छलांग भरता हुआ निकल गया। राजपुत्र अत्यन्त हठी था, वह रोने लगा। रक्षकों ने किशोर को पकड़ लिया। वे उसे राजमन्दिर की ओर ले चले।

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वातायन से रानी ने देखा, उसका लाल रोता हुआ लौट रहा है। एक आँधी-सी आ गई। रानी ने समाचार सुनकर उस बहेलिये के लड़के को बेंतों से पीटे जाने की आज्ञा दी।

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