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अपराधी
से बहती हुई बरसाती नदी की धारा में बुल्ले के समान बह गया।
उसका हृदय विषय-शून्य हो गया। एक बार सचेत होकर, उसने
देखा और पहचाना---अपना वही---"जीर्ण कौशेय उष्णीश"।
कहा---"वन-पालिका!"
"राज"---कामिनी की आँखों में आँसू नहीं थे।
"यह कौन था?"
गम्भीर स्वर में सर नीचा किए वन-पालिका ने कहा---"अपराधी।"
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