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रूप की छाया
काशी के घाटों की सौध-श्रेणी जाह्नवी के पश्चिमी तट पर धवल शैलमाला-सी खड़ी हैं। उनके पीछे दिवाकर छिप चुके। सीढ़ियों पर विभिन्न-वेष-भूषा वाले भारत के प्रत्येक प्रान्त के लोग टहल रहे हैं। कीर्तन, कथा और कोलाहल से जाह्नवी तट पर चहल-पहल है।
एक युवती भीड़ से अलग एकान्त में ऊँची सीढ़ी पर बैठी
हुई भिखारी का गीत सुन रही है, युवती कानों से गीत सुन रही
है, आँखों से सामने का दृश्य देख रही है। हृदय शून्य था,
तारा-मण्डल के विराट गगन के समान शून्य और उदास।
सामने गंगा के उस पार चमकीली रेत बिछी थी। उसके बाद
वृक्षों की हरियाली और ऊपर नीला आकाश, जिसमें पूर्णिमा का
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