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आकाश-दीप
 


पान बनाकर दिया और कहा---"क्या एक बात मैं भी पूछ सकती हूँ?"

"उत्तर देने ही में तो छात्रों का समय बीतता है, पूछिये।"

"कभी तुम्हें रामगाँव का स्मरण होता है? यमुना की लोल-लहरियों में से निकलता हुआ अरुण और उसके श्यामल तट का प्रभात स्मरण होता है? स्मरण होता है एक दिन हम लोग कार्तिक-पूर्णिमा-स्नान को गये थे, मैं बालिका थी, तुमने मुझे फिसलते देखकर, हाथ पकड़ लिया था, इस पर साथ की और स्त्रियाँ हँस पड़ी थीं, तुम लज्जित हो गये थे।"

२५ वर्ष के युवक छात्र ने अपने जीवन-भर में जैसे आज ही एक आश्चर्थ की बात सुनी हो, वह बोल उठा---"नहीं तो।"

XXX

कई दिन बीत गए।

गङ्गा के स्थिर जल में पैर डाले हुए, नीचे की सीढ़ियों पर सरला बैठी हुई थी। कारुकार्य-खचित-कंचुकी के ऊपर कन्धे के पास सिकुड़ी हुई साड़ी; आधा खुला हुआ सिर, बङ्किमग्रीवा और मस्तक में कुंकुम-बिन्दु—महीन चादर में—सब अलग-अलग दिखाई दे रहे थे। मोटी पलकोंवाली बड़ी-बड़ी आँखें गंगा के हृदय में से मछलियों को ढूँढ़ निकालना चाहती थी। कभी-कभी वह बीच धारा में बहती हुई डोंगी को देखने लगती। खेनेवाला

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