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ज्योतिष्मती

तामसी रजनी के हृदय में नक्षत्र जगमगा रहे थे। शीतल पवन की चादर उन्हें ढॅक लेना चाहती थी, परन्तु वे निविड़ अन्धकार को भेदकर निकल आये थे, फिर यह झीना आवरण क्या था!

बीहड़, शैलसंकुल वन्य-प्रदेश, तृण और वनस्पतियों से घिरा था। वसन्त की लताएँ चारों ओर फैली हुई थीं। हिमवान की उच्च उपत्यका, प्रकृति का एक सजीव, गम्भीर, और प्रभावशाली चित्र बनी थी!

एक बालिका, सूक्ष्म कंबल-वासिनी सुन्दरी बालिका चारों ओर देखती हुई चुपचाप चली जा रही थी। विराट हिमगिरि की गोद में वह शिशु के समान खेल रही थी। बिखरे हुए बालों को सम्हाल कर उन्हें वह बार बार हटा देती थी और पैर बढ़ाती हुई

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