सुकुमारी बालिका सत्वों और दस्युओं का स्मरण करते ही एक बार काँप उठी। फिर सम्हल कर बोली——
"मेरी वह नितान्त आवश्यकता है। वह मुझे भय ही सही तुम कौन हो?"
"एक साहसिक——"
"साहसिक और दस्यु तो क्या सत्व भी हो तो उसे मेरा काम करना होगा।"
"बड़ा साहस है, तुम्हें क्या चाहिये सुन्दरी? तुम्हारा नाम क्या है?"
"बनलता!"
"बूढ़े बनराज, अन्धे बनराज की सुन्दरी बालिका बनलता।"
"हाँ।"
"जिसने मेरा अनिष्ट करने में कुछ भी उठा न रखा वही बनराज?" क्रोध-कम्पित स्वर से आगन्तुक ने कहा।
"मैं नहीं जानती, पर क्या तुम मेरी याचना पूरी करोगे?"
शीतल प्रकाश में लम्बी छाया जैसे हँस पड़ी और बोली——
"मैं तुम्हारा विश्वस्त अनुचर हूँ। क्या चाहती हो, बोलो?"
"पिताजी के लिए ज्योतिष्मती चाहिए।"
"अच्छा चलो खोजें।" कह कर आगन्तुक ने बालिका का हाथ पकड़ लिया। दोनों बीहड़ बन में घुसे। ठोकरें लग रही थीं,
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