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रमला
 

रमला भी बड़ी ढीठ थी। वह गाँव भर में सबसे चञ्चल लड़की थी। लड़की क्यों! वह युवती हो चली थी। उसका व्याह नहीं हुआ था। वह अपनी जाति-भर में सबसे अधिक गोरी थी, तिस पर भी उसका नाम पड़ गया था रमला! वह ऐसी बाधा थी, कि व्याह होना असम्भव हो गया। उसमें सबसे बड़ा दोष यह था, कि वह बड़े-बड़े लड़कों को भी उनकी ढिठाई पर चपत लगाकर हँस देती थी। झील के दक्षिण की पहाड़ी से कोसों दूर पर उसका गाँव था।

मंजल भी कम दुष्ट न था, वह प्रायः रमला को चिढ़ाया करता। अपने सब लड़कों से सलाह की---"रमला की पहाड़ी पर चला जाय।"

बालक इकट्ठे हुए। रमला भी आज पहाड़ी पर पशु चराने को ठहरी। सब चढ़ने लगे; परन्तु रमला सबके पहले थी। सबसे ऊँची चोटी पर खड़ी होकर उसने कहा---"लो मैं सबके आगे ही पहुँची," कहकर पास के लड़के को चपत लगा दी।

मंजल ने कहा---उधर तो देखो! वह क्या है?

रमला ने देखा सुन्दर झील! वह उसे देखने में तन्मय हो गई थी। प्रतिहिंसा से भरे हुए लड़के ने एक हलका-सा धक्का दिया, यद्यपि वह उसके परिणाम से पूरी तरह परिचित नहीं था; फिर भी रमला को तो कष्ट भोगने के लिये कोई रुकावट न थी। वह लुढ़क चली, जब तक एक झाड़ को पकड़ती और वह

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