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आकाश-दीप
"एक मेरी पालतू बुलबुल शीत में हिन्दोस्तान की ओर चली गया था। वह लौटकर आज सबेरे दिखलाई पड़ा पर जब वह पास आ गया और मैंने उसे पकड़ना चाहा तो वह उघर कोहकाफ़ की ओर भाग गया!" शीरीं के स्वर में कम्पन था फिर भी वे शब्द बहुत सम्हलकर निकले थे। सरदार ने हँसकर कहा---"फूल को बुलबुल की खोज? आश्चर्य है!"
बिसाती अपना सामान छोड़ गया, फिर लौटकर नहीं आया। शीरीं ने बोझ तो उतार लिया पर दाम नहीं दिया।
॥ समाप्त ।।
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