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ममता
 


बेटी। किसी भी दिन शेरशाह रोहिताश्व पर अधिकार कर सकता हैं; उस दिन मंत्रित्व न रहेगा, तब के लिये बेटी!"

"हे भगवान्! तब के लिये! विपद के लिये! इतना आयोजन! परम पिता की इच्छा के विरुद्ध इतना साहस! पिताजी, क्या भीख न मिलेगी? क्या कोई हिन्दू भूपृष्ठ पर न बचा रह जायगा, जो ब्राह्मण को दो मुट्ठी अन्न दे सके? यह असंभव है। फेर दीजिये पिताजी, मैं काँप रही हूँ---इसकी चमक आँखों को अंधा बना रही है!"

"मूर्ख है"---कह कर चूड़ामणि चले गये।

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दूसरे दिन जब डोलियों का तॉता भीतर आ रहा था, ब्राह्मण-मन्त्री चूड़ामणि का हृदय धक्-धक् करने लगा। वह अपने को रोक न सका। उसने जाकर रोहिताश्व-दुर्ग के तोरण पर डोलियों का आवरण खुलवाना चाहा। पठानों ने कहा---

"यह महिलाओ का अपमान करना है।"

बात बढ़ गई। तलवारें खिचीं, ब्राह्मण वहीं मारा गया और राजा रानी और कोष सब छली शेरशाह के हाथ पड़े; निकल गई ममता। डोली में भरे हुए पठान सैनिक दुर्ग भर में फैल गये, पर ममता न मिली।

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