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आकाश-दीप
 

गुल की आँखों में अभी नशे का उतार था। उसने अँगडाई लेकर एक जँभाई ली, और कहा---"बड़े आश्चर्य की बात है। क्यों मीना, अब क्या किया जाय?"

अकस्मात् स्वर्ग के भयानक रक्षियों ने आकर उस युवक को बन्दी कर, लिया। मीना रोने लगी, गुल चुपचाप खड़ा था, बहार खड़ी हँस रही थी।

सहसा पीछे आते हुए प्रहरियों के प्रधान ने ललकारा---"मीना और गुल को भी।"

अब उस युवक ने घूम कर देखा; घनी दाढी मूँछोंवाले प्रधान की आँखों से आँखें मिलीं।

युवक चिल्ला उठा---"देवपाल!"

"कौन! लज्जा? अरे!"

"हाँ, तो देवपाल, इस अपने पुत्र गुल को भी बन्दी करो, विधर्मों का कर्तव्य यही आज्ञा देता है।"---लज्जा ने कहा।

"ओह!"--–कहता हुआ प्रधान देवपाल सिर पकड़ कर बैठ गया। क्षण-भर में वह उन्मत्त हो उठा, और दौड़कर गुल के गले से लिपट गया।

सावधान होने पर देवपाल ने लज्जा को बन्दी करनेवाले प्रहरो से कहा---"उसे छोड़ दो।"

प्रहरी ने बहार की ओर देखा। उसका गूढ़ संकेत समझ कर वह बोल उठा---"मुक्त करने का अधिकार केवल शेख को है।"

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