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आकाश-दीप
 

तातारों के सेनापति नै आकर देखा, उस दावाग्नि के अंधड़ में तृण-कुसुन सुरक्षित है। वह अपनी प्रतिहिंसा से अंधा हो रहा था। कड़कर उसने पूछा---"तु शेख की बेटी है?"

मीना ने जैसे मूर्च्छा से आँखें खोलीं। उसने विश्वास-भरी वाणी से कहा---"पिता मैं तुम्हारी लीला हूँ!"

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सेनापति विक्रम को उस प्रान्त का शासन मिला; पर मीना उन्हीं स्वर्ग के खँडहरों में उन्मुक्त घूमा करती। जब सेनापति बहुत स्मरण दिलाता, तो वह कह देती---"मैं एक भटकी हुई बुलबुल हूँ। मुझे किसी टूटी डाल पर अंधकार बिता लेने दो! इन रजनी विश्राम का मूल्य---अंतिम तान सुनाकर जाऊँगी।"

मालूम नहीं, उसकी अंतिम तान किसी ने सुनी या नहीं।


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