शब्द सुनाई पड़ा। उसे नेरा का ध्यान आ गया। वह होंठ काट
कर अपने पलंग पर जा पड़ा। मात्रा कुछ अधिक थी। आतिशदान
के कार्निस पर धरे हुए शीशे का बक्स और बोतल चमक उठे। पर
उसे क्रोध ही अधिक आया, बिजली बुझा दी।
कुछ अधिक समय बीतने पर किसी चिल्लाहट से चन्द्रदेव की नींद खुली। रामू का-सा शब्द था। उसने स्विच दबाया, आलोक में चन्द्रदेव ने आश्चर्य से देखा कि रामू के हाथ में वही सुनहला साँप हथकड़ी-सा जकड़ गया है! चन्द्रदेव ने कहा---"क्योरे बदमाश! तू यहाँ क्या करता था? अरे इसका तो प्राण संकट में है, नेरा होती तो!"
चन्द्रदेव घबड़ा गया था। इतने में नेरा ने कमरे में प्रवेश किया। इतनी रात को यहाँ? चन्द्रदेव क्रोध से चुप रहा। नेरा ने साँप से रामू का हाथ छुड़ाया और फिर उसे बक्स में बन्द किया। तब चन्द्रदेव ने रामू से पूछा---"क्यों बे तू यहाँ क्या कर रहा था?" रामू काँपने लगा।
"बोल, जल्द बोल! नहीं तो तेरी खाल उधेड़ता हूँ।"
रामू फिर भी चुप था।
चन्द्रदेव का चेहरा अत्यन्त भीषण हो रहा था। वह कभी नेरा की ओर देखता और कभी रामू की ओर। उसने पिस्तौल उठाई, नेरा रामू के सामने आ गई। उसने कहा---"बाबूजी, यह मेरे लिये शराब लेने आया था, जो उस बोतल में धरी है।"
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