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भिखारिन
 

"तुम लोग बड़ी निष्ठुर हो भाभी! उस दिन माँ से कहा कि इसे नौकर रख लो, तो वह इसकी जाति पूछने लगी; और आज तुम भी हँसी ही कर रही हो!"

निर्मल की बात काटते हुए भिखारिन ने कहा---"बहूजी, तुम्हें देखकर मैं तो यही जानती हूँ कि ब्याह हो गया है। मुझे कुछ न देने के लिये बहाना कर रही हो!"

"मर पगली ! बड़ी ढीठ है!"---भाभी ने कहा।

"भाभी ! उस पर क्रोध न करो। वह क्या जाने, उसकी दृष्टि में सब अमीर और सुखी लोग विवाहित हैं। जाने दो, घर चलें!"

"अच्छा, चलो, आज माँ से कहकर इसे तुम्हारे लिये टहलनी रखवा दूँगी।"---कहकर भाभी हँस पड़ी!

युवक-हृदय उत्तेजित हो उठा। बोला---"यह क्या भाभी! मै तो इससे ब्याह करने के लिये भी प्रस्तुत हो जाऊँगा! तुम व्यंग्य क्यों कर रही हो?"

भाभी अप्रतिभ हो गई! परन्तु भिखारिन अपने स्वाभाविक भोलेपन से बोली---"दो दिन माँगने पर भी तुम लोगों से एक पैसा तो देते नहीं बना, फिर गाली क्यों देते हो बाबू? ब्याह करके निभाना तो बड़ी दूर की बात है!"---भिखारिन भारी मुँह किये लौट चली।

बालक रामू अपनी चालाकी में लगा था! माँ के जेब से छोटी दुअन्नी अपनी छोटी उंगलियों से उसने निकाल ली,

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