बुद्धगुप्त ने उसे छोड़ दिया।
चम्पा ने युवक जलदस्यु के समीप आकर उसके क्षतों को अपनी स्निग्ध दृष्टि और कोमल करों से वेदना-विहीन कर दिया। बुद्धगुप्त के सुगठित शरीर पर रक्त-बिन्दु विजय-तिलक, कर रहे थे।
विश्राम लेकर बुद्धगुप्त ने पूछा---"हम लोग कहाँ होंगे?"
"बालीद्वीप से बहुत दूर, संभवतः एक नवीन द्वीप के पास, जिसमें अभी हम लोगों का बहुत कम आना-जाना होता है। सिंहल के वणिकों का वहाँ प्राधान्य है।”
"कितने दिनों में हम लोग वहाँ पहुँचेंगे?"
"अनुकूल पवन मिलने पर दो दिन में। तब तक के लिये खाद्य का अभाव न होगा।"
सहसा नायक ने नाविको को डाँड़ लगाने की आज्ञा दी, और स्वयं पतवार पकड़ कर बैठ गया। बुद्धगुप्त के पूछने पर उसने कहा---“यहाँ एक जलमग्न शैलखण्ड है। सावधान न रहने से नाव के टकराने का भय है।”
३
"तुम्हें इन लोगों ने बंदी क्यों बनाया?"
"वणिक मणिभद्र की पाप-वासना ने।"
"तुम्हारा घर कहाँ है?”
"जाह्नवी के तट पर। चम्पा-नगरी की एक क्षत्रिय बालिका
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