पृष्ठ:आकाश -दीप -जयशंकर प्रसाद .pdf/९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
देवदासी
 

"ऐसा न कहो पाप होगा; देवता रुष्ट होंगे---"उसने कहा।

"पापों को देवता खोजें, मनुष्य के पास कुछ पुण्य भी है पद्मा! तुम उसे क्यों नहीं खोजती हो! पापों का न करना ही पुण्य नहीं। तुम अपनी आत्मा की अधिकारिणी हो, अपने हृदय की तथा शरीर की सम्पूर्ण स्वामिनी हो, मत डरो। मैं कहता हूँ कि इससे देवता प्रसन्न होंगे; आशीवाद की वर्षा होगी।"---मैंने एक साँस में कहकर देखा कि उसके मस्तक में उज्ज्वलता आ गई हैं, वह एक स्फूर्ति का अनुभव करने लगी है। उसने कही---"अच्छा तो फिर मिलूँगी।"

वह चली गई। मैंने देखा कि बूढ़ा चिदम्बरम् मेरे पीछे खड़ा मुस्करा रहा है। मुझे क्रोध भी आया पर कुछ न बोलकर, मैंने पुस्तक बटोरना आरम्भ किया।

तुम कुछ अपनी सम्मति दोगे?

---अशोक

×
×
×

'•••••••••'

१--४--२५


रमेश!

कल संगीत हो रहा था। मंदिर आलोक-माला से सुसज्जित था। नृत्य करती हुई पद्मा गा रही थी---"नाम समेत वृत

--- ९५ ---