पृष्ठ:आग और धुआं.djvu/११०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

देश मृत्यु-मुख में पड़ा है।"

पेरिस जाने की तैयारी करने के बाद कोर्दे मठ में जाकर पिता और बहनों से मिली। उसके दोनों भाई राजा की सेवा में चले गये थे। पिता से उसने इंगलैंड जाने का बहाना किया। पिता ने अनुमति दे दी। कोर्दे चाची के पास लौट आई। दो दिन चाची की सेवा करने के बाद, अपनी सखी-सहेलियों और चाची से विदा होकर और अन्तिम बार उस स्थान का नमस्कार कर कोर्दे ने पेरिस के लिये प्रस्थान किया। दो दिन के पश्चात् वह पेरिस पहुंच गई और यहाँ एक होटल में रहने का उसने प्रबन्ध किया।

पेरिस में कोर्दे नगर में एक प्रतिनिधि दूप्रे से मिली। उससे परिचय करने के लिये गिरोण्डिस्ट दल के एक सदस्य बार्बरी से कोर्ट ने केईन नगर में ही एक पत्र लिखा लिया था।

भेंट होने पर उसने प्रतिनिधि से कहा-"मुझे आप मन्त्री मारोत से मिला दीजिए, मुझे उनसे काम है।"

दूप्रे ने अगले दिन कोर्दे को मारोत के पास ले चलने का वचन दिया। चलते समय कोर्ट ने बहुत धीमे स्वर में दूप्रे से कहा-"आपका जीवन सुरक्षित नहीं है, आप इस स्थान को छोड़ दीजिये और केइन नगर जाकर अपने साथियों में मिल जाइए, परिषद् में आप अब कोई भी अच्छा कार्य नहीं कर सकते।"

दूप्रे ने कहा-“मैं पेरिस में नियुक्त हुआ हूँ, मैं इस स्थान को नहीं छोड़ूँगा।"

कोर्ट ने फिर कहा-"आप भूल करते हैं, मेरा विश्वास कीजिये और आगामी रात्रि से पूर्व ही यहाँ से चले जाइये।"

परन्तु दूप्रे ने उस समय कोर्दे की बातों पर ध्यान नहीं दिया, परन्तु शीघ्र ही अधिकारियों की शनि-दृष्टि उस पर पड़ गई। उसका नाम संदिग्ध मनुष्यों की सूची में लिख लिया गया।

दूसरे दिन बड़े सबेरे ये दोनों मारोत से मिलने गये, परन्तु मारोत ने संध्या के पूर्व भेंट करने में असमर्थता प्रकट की। कोर्दे उससे मिलकर मारोत के विषय में कुछ बातें जानना चाहती थी, पर अब उसने अपना विचार बदल दिया। समय नष्ट करना उसे व्यर्थ प्रतीत होने लगा। दूप्रे को धन्यवाद

११०