पृष्ठ:आग और धुआं.djvu/१५०

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जो कि उसने अपने व्यवहार और अपनी वीरता से उपार्जन किया था, फिर भारत लौटकर अभागे देशी नरेशों को उनके पैतृक राज्य वापस दिलाने और इन पूर्वीय प्रदेशों में, जहाँ पर कि जादी इतनी बार विजय प्राप्त कर चुका था, स्थायी और गौरवान्वित शान्ति स्थापित करने का निश्चय किया। किन्तु इन समस्त स्मरणीय वीरकृत्यों के बाद और उनके कारण जादी के महान् यश प्राप्त करने के बाद, उच्च आत्माओं की सर्वोच्च भावना, अर्थात्प्रेम ने जादी की समस्त महत्त्वाकांक्षाओं पर पानी फेर दिया। जादी ने मिरजा को देखा है, और जब से जादी ने मिरजा का दिव्य मुखड़ा देखा है, तब से जादी को एक क्षण के लिए भी सुख अथवा चैन नसीब नहीं हुआ। यद्यपि जादी के पास धन और उसका यश इतना अधिक है कि शायद योरोप तथा एशिया के अन्दर अनेक सुन्दर स्त्रियाँ उससे प्रगाढ़ प्रेम दर्शाने को तैयार हो जाती, तथापि जादी के हृदय में किसी दूसरी स्त्री के लिए अणुमात्र भी विचार अथवा स्थान नहीं है। जादी के समस्त मन, हृदय और आत्मा के अन्दर प्रियतमा मिरजा ही मिरजा भरी हुई है। जादी के लिए मिरजा ही उसका विश्व है। यदि जादी को यह पता लग जाय कि वह प्रबल मोहिनी, अर्थात् मिरजा जादी की प्रतीक्षा से प्रसन्न है, तो जादी सृष्टि में अपने को सबसे अधिक भाग्यवान् समझेगा और अपना समस्त धन और वैभव मिरजा के चरणों पर अर्पण कर देगा। जादी के लिए मिरजा ही इस पृथ्वी पर सबसे बड़ी सुन्दरी है। जब तक जादी को मिरजा के अन्तिम निश्चय का पता नहीं लगता, उसे चैन नहीं मिल सकता। प्रेम के मामले में संदेह और शंका की अवस्था इतनी अधिक कष्टकर होती है कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। इसलिए जादी अपने प्रशंसा-पात्र मिरजा से प्रार्थना करता है कि जादी की अधीरता को देखते हुए वह इस पत्र का शीघ्र ही उत्तर दे। दयालु परमात्मा मिरजा के चित्त में वह दया उत्पन्न करे कि मिरजा जादी की संतप्त आत्मा को फिर से शांति प्रदान कर सकें। जहाँ पर आपको यह अप्रकट लेख मिले, वहीं पर इसका उत्तर रख दीजिए। उत्तर जादी के हाथों में सुरक्षित पहुँच जायगा।"

पत्र पढ़कर युवती ने तुरन्त अनुमान कर लिया कि इस पत्र का भेजने वाला कौन है। उसने इस बात की जाँच करना उचित न समझा कि जादी

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