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[ दूसरा
आदर्श महिला

भटक रहे हैं। इतने में देखा कि सत्यवान और सावित्री दोनों धीरे- धीरे आश्रम को आ रहे हैं।

बूढ़े राजा द्युमत्सेन को आँखें मिली देखकर सावित्री की आँखों में आनन्द के आँसू भर आये।

राजा द्युमत्सेन अन्धे होने के कारण पतोहू का मुँह देख नहीं सके थे। वे आज सावित्री को देखकर बोले---मेरी पतोहू तो साक्षात् देवी है।

इस प्रकार बातचीत हो ही रही थी कि शाल्व राज्य से दूत ने आकर ख़बर दी कि आपके सेनापति ने शत्रु को हराकर राज्य पर फिर अधिकार जमा लिया है।

वशिष्ठाश्रम में इस मंगल-संवाद के आने से उत्सव मनाया जाने लगा।

यहाँ मद्र-नरेश ने देखा कि आज जेठ की अमावस है। पिछली रात को, महर्षि का बताया हुआ, एक वर्ष पूरा हो गया। यही सोचकर वे उदास मन से वशिष्ठाश्रम में आये कि न जाने सावित्री के भाग्य में क्या घटना हुई हो। उन्होंने देखा कि आश्रम में आनन्द से उत्सव मनाया जा रहा है। आज सावित्री साक्षात् अन्नपूर्णा की तरह रसोई-घर में भूखों के लिए भोजन बना रही है।

मद्रराज के आने की ख़बर पाते ही सावित्री दौड़कर पिता के पास पहुँची। अश्वपति ने कहा---बेटी! कल महर्षि का बताया हुआ एक वर्ष पूरा हो गया।" सावित्री ने उनसे सारी घटना कह सुनाई। आज सब पर सावित्री का वर्ष भर का छिपा हुआ, मंत्र प्रकट हुआ।

सबलोग सावित्री के इस अलौकिक काम को सुनकर धन्य-धन्य