सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आदर्श महिला.djvu/१३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
आख्यान ]
१२१
दमयन्ती

रानी---और महाराज नल कैसे हैं? सुना है कि वह अब तक क्वाँरे ही हैं। मेरी इच्छा है कि आप निषध देश के राजा के पास मन्त्री के द्वारा इस पैग़ाम को जल्दी भेजिए।

राजा---रानी! है तो यह सम्बन्ध बड़ा उत्तम, किन्तु कौन जानता है कि नल इस सम्बन्ध को मंजूर करेंगे या नहीं। रानी! तुम यह नहीं जानती कि नल नर के रूप में देवता हैं। वे बड़े भारी राज्य के मालिक हैं। मुझे हिम्मत नहीं होती कि उनसे यह प्रस्ताव करूँ। मेरी दमयन्ती का ऐसा भाग्य कहाँ कि वह निषध देश की रानी हो।

रानी---क्यों महाराज! आप इसको अनहोनी क्यों समझते हैं? मेरी दमयन्ती जैसी सुशीला और सिखाई-पढ़ाई हुई है, स्त्रियों में रत्नस्वरूप वैसी कन्या के लिए सब तरसते हैं। मेरा विश्वास है कि आप निषध देश के राजा से यह प्रस्ताव करेंगे तो वे कभी नामंजूर नहीं करेंगे। फिर महाराज! फूल की सुगन्ध की तरह यश और सद्गुण की बातें तो आपसे आप फैल जाती हैं। नहीं तो कहाँ विदर्भ और कहाँ निषध! निषध-नरेश की आपने जो कीर्त्ति बतलाई है उसे आपके राज्य में कौन ले आया? इसी प्रकार, महाराज! कौन कह सकता है कि मेरी दमयन्ती के गुणों की प्रशंसा निषध-राज के सिंहासन तक न पहुँची होगी?

राजा ने कुछ अचम्भे में आकर कहा---रानी! मैं निषध-राज के निकट यह प्रस्ताव करने में सकुचाता हूँ।

रानी---महाराज! आप संकोच मत कीजिए। नाथ! कीचड़ में उत्पन्न होने से कमल क्या देवता के चरणों में स्थान नहीं पाता? महाराज! गुण ही सब में प्रधान है। मेरी दमयन्ती रूप में रति, ऐश्वर्य में लक्ष्मी और गुणों में सरस्वती है। महाराज! वस्तु का