विचार जन्मस्थान से नहीं होता। जो वस्तु का विचार जन्मस्थान से ही किया जाता तो मणि का आदर जगत् में कैसे होता? सम्भव है, निषध देश आपके राज्य से बढ़-चढ़कर हो, किन्तु इसमें भी सन्देह नहीं कि नारीत्व और देवीत्व गुण की एकमात्र मिलनभूमि आपकी बेटी दमयन्ती से आपका ऐश्वर्य बहुत बढ़ गया है। निषध देश के राजा को आपकी दमयन्ती का रूप और गुण अवश्य ही अच्छा लगा है। महाराज! मैं दिव्य दृष्टि से देखती हूँ, हमने जिस प्रकार नल पर मन गड़ाया है उसी प्रकार नल के हृदय में भी विदर्भ-देश और विदर्भ-राजकुमारी की छाया पड़ी है।
राजा---रानी! तुम्हारी बात से मुझे हिम्मत होती है। अच्छा, नल यदि दमयन्ती के रूप और गुण को पसन्द करते हैं तो फिर उनके पास मंत्री को भेजने की ज़रूरत ही क्या है? कन्या के स्वयंवर की चाल हम लोगों में वंश-परम्परा से चली आती है। मैं दमयन्ती के स्वयंवर करने का ढिंढोरा पिटवाता हूँ। मेरा दूत निषध-राज्य में जाकर दमयन्ती के स्वयंवर की बात कहेगा। अगर नल इस सम्बन्ध को चाहते होंगे तो वे स्वयंवर-सभा में अवश्य आवेंग; और फिर हम लोगों का संकल्प सिद्ध हो जावेगा।
रानी---अच्छा, ऐसा ही कीजिए।
राजा की आज्ञा से राजकुमारी के स्वयंवर की बड़ी भारी तैयारी तुरन्त होने लगी। थोड़े ही समय में स्वयंवर का समाचार विदर्भ- राजधानी में फैल गया।
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राजकुमारी के स्वयंवर की खबर सुनकर प्रजा के आनन्द की सीमा न रही। पुरवासी प्रसन्न होकर अपना-अपना घर-द्वार सजाने और सब लोग स्वयंवर के दिन की बाट देखने लगे।