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[ तीसरा
आदर्श महिला

देवताओं का काम करने के लिए नल राजकुमारी के महल की ओर चले। अब नल के हृदय में दो ज़बर्दस्त पक्ष आकर लड़ने लगे। एक सत्य और दूसरा प्रेम।

[ ५ ]

ज दमयन्ती का स्वयंवर है। स्वयंवर के लायक श्रृंगार से सज-धजकर दमयन्ती, रसीली सहेलियों की बातचीत से प्रसन्न होती हुई, स्वयंवर-सभा में जाने की बाट देख रही है। इतने में किसी के ढकेलने से कमरे का दरवाज़ा अचानक खुल गया। दमयन्ती ने देखा कि सुन्दर वेषवाला एक जवान उस कमरे में आकर खड़ा हो गया है। सखियाँ और दमयन्ती उस बहुत सुन्दर जवान को अचानक आते देखकर अकचका गई। राजकुमारी दमयन्ती उठकर खड़ी हो गई; खाली आसन मानो आग्रह से अतिथि का आदर करने लगा।

हँसमुख सखियों के चेहरे पर भयभरे अचरज की छाया देखकर दमयन्ती ने विधाता को प्रणाम किया और कहा---सदाचार में चतुर महात्मानों ने नियम कर दिया है कि रनिवास में किसी बेजान-पहचान के पुरुष का जाना बेजा है; तो भी जो आप छिपकर मेरे मकान में घुस आये हैं तो आप मेरे अतिथि हैं। कृपा कर मेरे नमस्कार को स्वीकार कीजिए। महाशय! यह महल का बाहरी कमरा है। इसलिए यहाँ आपके योग्य आसन का इन्तज़ाम नहीं है। देखिए, मेरी सखियाँ भी आपके एकाएक आ जाने से डर गई हैं और अचरज में डूबी हुई हैं। महाभाग! आपके हाथ-मुँह धोने के लिए जल आदि देने में देर हो रही है। इस कारण आप इस बिना सहाय की बालिका पर नाराज़ न हूजिएगा।

बिना सहाय की बालिका! तुमने चुपचाप अपने जीवन के स्वामी