पृष्ठ:आदर्श महिला.djvu/१५

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आदर्श महिला


पति रावण भी एक दिन सीता के रूप-गुण की प्रशंसा सुनकर, उन्हें पाने की इच्छा से, आया था; किन्तु धनुष को चढ़ाने जाकर हास्यास्पद हुआ। रावण अपने भाग्य की इस हँसी को नहीं समझ सका। सीता की मोहिनी मूर्ति उसके मानस-नेत्र के सामने नाचने लगी मानो सर्व-नाश कोई सुन्दर मूर्ति धरकर उसकी आँखों के सामने चमकने लगा।

[ २ ]

योध्या-नरेश राजा दशरथ एक दिन दरबार में बैठे थे, इतने में महर्षि विश्वामित्र ने वहाँ आकर राजा को आशीर्वाद दिया। महाराज के प्रणाम करने पर विश्वामित्र ने कहा---राजन्! तपोवन में राक्षस-राक्षसियों के उत्पात से मुनियों को निर्विन यज्ञ करना कठिन हो गया है। महाराज! मैंने एक यज्ञ करने का संकल्प किया है; किन्तु राक्षस-राक्षसियों का उत्पात सोचकर उसकी सफलता में मुझे सन्देह होता है। आप क्षत्रिय राजा हैं। दुखी का दुख दूर करके राज-धर्म का पालन कीजिए।

महाराज ने पूछा--"इस विषय में महर्षि की क्या आज्ञा है?"विश्वामित्र ने कहा---आपके दो पुत्र, राम और लक्ष्मण, धनुर्विद्या में बहुत निपुण हैं मानो लाक्षात् धनुर्वेद ने राम-लक्ष्मण रूप से अवतार लिया है। इसलिए आप राक्षस-राक्षसियों के उपद्रव से यज्ञ की रक्षा करने के लिए राम और लक्ष्मण को मेरे साथ कर दीजिए। यज्ञ पूरा होते ही वे राजधानी को लौट आवेंगे।

राजा दशरथ ने दुःखित मन से राम-लक्ष्मण को जाने दिया।

रामचन्द्र और लक्ष्मण महर्षि विश्वामित्र के साथ निबिड़ वन से होकर जाते थे। इतने में देखा कि ताड़का नाम की राक्षसी मुँह