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[ तीसरा
आदर्श महिला

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न्द्र, वरुण, अग्नि और धर्मराज स्वर्ग को जा रहे हैं। रास्ते में कलियुग और द्वापर से भेट हुई। इन्द्र ने पूछा---क्यों कलि! इधर कहाँ जाते हो?

कलि---सुना है कि आज विदर्भ-राजकुमारी मशहूर सुन्दरी दम- यन्ती की स्वयंवर-सभा में देवताओं और मनुष्यों का अजीब जमाव हुआ है। इस नये दृश्य को देखने के लिए आज मैं वहीं जाता हूँ।

इन्द्र---कलि! लौट चलो। हम लोग उसी स्वयंवर-सभा से लौट रहे हैं। विदर्भ-राज की परम सुन्दरी बेटी ने हमलोगों के सामने ही निषध देश के राजा नल को जयमाला पहना दी। हम लोग नये दूलह-दुलहिन को आशीर्वाद देकर आ रहे हैं।

कलि---जो दिक्पालों के सामने अदन मनुष्य के गले में जय- माला डाल सकती है उस गर्वीली राज-कन्या को आशीर्वाद! आप लोग क्या कह रहे हैं?

इन्द्र--कलि! तुम क्या यह नहीं जानते कि सती समूचे ब्रह्माण्ड को भी जीत लेती है? विदर्भ-राजकन्या देवताओं के हज़ार लोभ दिखाने पर भी अपने सती-धर्म से ज़रा भी नहीं डिगी। यह तो हर एक के लिए गौरव की बात है। तुम उसके ऊपर इतने क्यों रूठे हो?

कलि---उसे इतना घमण्ड है कि उसने देवताओं को तुच्छ समझा। अच्छा, मैं उसका यह घमण्ड तोड़ूँगा।

इन्द्र आदि देवताओं ने कहा--"कलि! वृथा कोप करना बेजा है। तुम अपने घर जाओ और यदि चाहो तो निषध-राज्य में जाकर नये दम्पती को देखकर आँखें ठण्ढी कर आओ।" यह कहकर ने लोग सुरलोक को चले गये।

देवताओं की बात पर ऊपरी मन से शान्त-भाव दिखाकर कलि-