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आख्यान ]
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दमयन्ती

युग अपने स्थान को चला गया, किन्तु देवताओं के अपमान से वह आग में जलने सा लगा। फिर उसने द्वापर को सम्बोधन करके कहा---मैं देखूँगा कि दमयन्ती सुख से कैसे रहती है।

नल और दमयन्ती दोनों, ब्याह हो जाने पर, निषध देश को लोट आये। लक्ष्मी के समान दमयन्ती रानी को देखकर प्रजा की खुशी का ठिकाना न रहा। दमयन्ती ने प्रजा को मातृत्व की छाया से शीतल किया। विपद में फँसे हुए की विपद दूर कर, आश्रित की रक्षा कर और भूखे को अन्न देकर दमयन्ती लोक-माता धरती के समान शोभा पाने लगी।

समय पाकर दमयन्ती के एक लड़का और एक लड़की पैदा हुई। बेटे का नाम इन्द्रसेन और बेटी का नाम इन्द्रसेना रक्खा गया। मातृभाव से भरपूर दमयन्ती सुख की गृहस्थी में, स्वामी के किये हुए पुण्यकर्म की सहेली होकर, दिन बिताने लगी।

पृथ्वी पर कोई लगातार सुख नहीं भोग सकता। इसी से विधाता दुःख का प्रश्न आदमीयत की जाँच करता है। जो लोग इस जाँच में पूरे उतरते हैं वे सच्चे मनुष्य हैं। दमयन्ती इस जाँच में सोलहो आने पूरी उतरी थी, इससे वह इतनी पुनीत हो गई है कि भारत भर में सभी उसकी वाहवाह करते हैं।

नल के ऊपर कलि पहले ही से नाराज़ था, इससे वह सदा इस घात में रहता था कि कौनसा छिद्र पाऊँ कि नल की देह में घुस जाऊँ। एक दिन महाराज नल अशुद्ध अवस्था में सन्ध्या करते थे। इसी अवसर पर कलि उनके शरीर में घुस गया।

महाराज नल का एक छोटा भाई था। इसका नाम था पुष्कर। राजा नल जैसे मनुष्यता के पूरे अवतार थे, वैसे ही उनका भाई पुष्कर नरक के पिशाच का भद्दा ढाँचा था। ऐसा कोई बुरा काम न