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[ तीसरा
आदर्श महिला

उस पर आज पत्तों को लिपटा देख दमयन्ती अाँसुओं की धारा बहाने लगी।

नल ने कहा---रानी शोक करने से क्या होगा? भाग्य में जो लिखा है उसे तो भोगना ही होगा। ऐसी विपत्ति में पहले के सुख-चैन को भूलकर, वर्तमान समय की दुःख-दुर्दशा को ही अख़्त्यार कर लेना होगा। वर्तमान में जो काम किया जायगा उसी का फल भविष्य में भोगने को मिलेगा। ज्ञानियों का यही उपदेश है। पहले के बड़प्पन की बातों को याद कर तुम्हारी जैसी ऊँचे हृदयवाली स्त्री को दुःख न मानना चाहिए।

दमयन्ती ने आँसू पोंछकर कहा---हे निषध देश के राजा! मैं सब जानती हूँ और सब समझती हूँ, किन्तु महाराज! धूल से लिपटी हुई आपकी इस देह को देखकर जब आपकी चन्दन लगी हुई उस देह की याद आती है, जिस कोमल देह में कुंकुम लगाने में भी मुझे डर लगता था, उसको जब कंकड़-पत्थरों पर सोया हुआ देखती हूँ तब महाराज! मुझसे धीरज नहीं धरा जाता---हृदय में अशान्ति आप ही से उमड़ आती है।

नल ने प्रेम से कहा---"प्यारी! भगवान् के राज्य में सुख या दुःख कुछ नहीं है। भगवान् के राज्य में तो सभी सुख से भरा हुआ है। उन्होंने मनुष्य के लिए अपना अटूट भाण्डार खोल दिया है। हम लोगों के जीवात्मा को जब जिस चीज़ की ज़रूरत होती है तब वह उसे ले लेता है, इसलिए सुख-दुःख जो कुछ है सभी भगवान् का दान है। रानी! जिस दिन देखोगी कि सुख के साथ दुख का भेद-रहित ज्ञान हो गया है उस दिन हृदय में ज़रासी भी अशान्ति नहीं रहेगी; उस दिन देखोगी कि हृदय में स्वर्ग की वीणा बज रही है; प्रेम-मय विश्व की निडर वाणी जीवन को ढाढ़स दे रही है" दमयन्ती अपने