पृष्ठ:आदर्श महिला.djvu/१६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४८
[ तीसरा
आदर्श महिला

रखना। हे भगवन्! तुम्हारे चरणों में दमयन्ती को सौंपे जाता हूँ। आज तुम्हारे ही पवित्र बुलावे से मेरा मोह-जाल कट गया है। मैं सुनता हूँ कि हज़ारों प्राण मेरे लिए रोते हैं। प्रभो! यह मेरे मनुष्यत्व की परीक्षा है। यह तुम्हारा ही पवित्र बुलावा है। इसलिए मेरी दमयन्ती का मंगलमय भविष्य तुम्हारे ही मंगल-पूर्ण हाथ में है।" अब नल चलने लगे। वे एक पग चलकर फिर पीछे देखते हैं; फिर दो-तीन पग बढ़कर पीछे उलटकर देखते हैं कि दमयन्ती ज्यों की त्यों सोई है कि नहीं!

इस संसार में प्रीति का खिंचाव ऐसा बलवान् है कि वह किसी तरह नहीं हटता। महाराज नल सब समझ-बूझकर भी फिर दम- यन्ती की ओर लौटे। फिर सोचा---यह क्या? कहाँ जाता हूँ? मेरे जाने का रास्ता तो पीछे है। फिर दो-तीन पग बढ़े। अब उन्होंने सोचा कि मुझे इस खिंचाव को तोड़ना ही चाहिए। हृदय! शान्त हो जाओ, तुम्हारे इस भयङ्कर कर्म के भरोसे ही मेरा भविष्य और सैकड़ों प्रजाओं का सुख-दुख है। धीरे-धीरे नल अँधेरे में छिप गये। जहाँ तक नज़र पहुँचती है वहाँ तक वे एक-एक बार पीछे फिरकर देख लेते हैं कि दमयन्ती मेरे पीछे-पीछे तो नहीं चली आती है। पैरों के तले पेड़ों के जो पत्ते दबते थे उनकी आवाज़ से वे समझते थे कि दमयन्ती, नींद टूटने पर, मुझे न देख घबड़ाकर मुझे पकड़ने के लिए दौड़ी आ रही है, किन्तु कुछ ही देर बाद उन्होंने सामने से एक जंगली जानवर को जाते देखा।

घोर अँधेरा है, कुछ भी दिखाई नहीं देता। नल ने उसी अँधेरी रात में आकाश की ओर आँखें उठाकर सात-ऋषियों के मण्डल को देखा और ध्रुव तारे को पहचानकर, जिधर को जाना था, उधर जाने लगे। एक और पत्नी की हालत की और दूसरी और हज़ारों प्रजाओं