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[ तीसरा
आदर्श महिला

उसी दम उन लोगों की आँख बचाकर वहाँ से चल पड़ी, और जिधर का रास्ता मिला उधर ही को जाने लगी। अँधेरे में रास्ता न सूझता था। बड़ी-बड़ी कठिनाइयों से वह वहाँ से बहुत दूर निकल गई।

रात बीती, सबेरा हुआ। बिना ठौर-ठिकाने के, तेज़ी से चलने के कारण, उसके कपड़े फट गये और सारे शरीर पर धूल छा गई। अब दमयन्ती लाचार होकर एक नगर में गई। वहाँ के ऊधमी लड़कों ने, उसकी ऐसी सूरत देखकर, उसे पगली समझा। इसलिए वे उसका पीछा करके उसको चिढ़ाने लगे। आसरा पाने के लिए दमयन्ती सामने के राजमहल की ओर गई। पता लगा कि यह चेदि देश के राजा सुबाहु का महल है। दमयन्ती जब उस महल के दरवाज़े पर पहुँची तो राजमाता खिड़की से उस दीन वेषवाली स्त्री को देखकर तरस खा गई। उन्होंने एक लौंडी से कहा कि तुम इस स्त्री को तुरन्त मेरे पास ले आओ।

दमयन्ती के बाल बिखरे हुए थे। उसकी सारी भी चिथड़े-चिथड़े हो गई थी। जब इस वेष से दमयन्ती ने राज-भवन में जाकर राजमाता को सिर नवाया तो राजमाता ने लौंडी से कहा--तुम झटपट इसको नहाने के कमरे में ले जाकर नहला-धुला दो।

लौंडी उसको नहाने के घर में ले गई। दमयन्ती ने बदन का धूल-धक्कड़ धोकर राजमाता का दिया हुआ एक कपड़ा पहना। राजमाता की दया से उस सुन्दरी का चेहरा चमक उठा।

तब राजमाता ने उससे पूछा---बेटी! तू ऐसी पगली की तरह वन-वन क्यों घूमती थी?

दमयन्ती का शोक उमड़ आया। आँसुओं से उसकी छाती भीगने लगी। राजमाता ने आँचल से उसकी आँखे पोंछकर कहा--बेटी! यहाँ तेरे डरने की कोई बात नहीं। बेखटके तू मुझको अपना