पृष्ठ:आदर्श महिला.djvu/१७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५६
[ तीसरा
आदर्श महिला

[ १२ ]

धर विदर्भदेश के राजा ने जमाई और बेटी के देश त्यागने की बात सुनकर, उनको ढूँढ़ने के लिए देश-देश में आदमी भेजे। वे लोग अपने मालिक के हुक्म से-गाँव-गाँव, नगर-नगर, जंगल-जंगल---नल और दमयन्ती की खोज में रात-दिन घूमने लगे।

एक दिन सुदेव नामक एक ब्राह्मण ने दैवयोग से चेदि-राज्य की राजपुरी में, सुनन्दा के साथ दमयन्ती को टहलते देखा। दमयन्ती ने, पिता के घर से आये हुए, सुदेव ब्राह्मण को पहचाना और उसे पास बुलाकर माता-पिता का कुशल-समाचार पूछा। थोड़ी दूर पर खड़ी होकर सुनन्दा उन दोनों की बातचीत सुनती थी। उसने जब सुना कि उसकी सखी विदर्भ देश की राज-कन्या है तब वह बड़े अचरज से माता के पास दौड़ी गई। उसने जाकर माता से कहा---"मा! दीन वेष में आई हुई मेरी सखी कोई मामूली स्त्री नहीं है। वह विदर्भ-राज की लड़की और निषध-नरेश महाराज नल की रानी दमयन्ती है।" यह सुनकर राजमाता ने अचरज से कहा ---सुनन्दा! तुम यह क्या कहती हो? तब तो दमयन्ती अपने नाते की ही है। परन्तु उसकी ऐसी हालत क्यों हुई? मैंने अब तक कुछ भी हाल नहीं जान पाया। तुम क्या कहती हो, कुछ समझ में नहीं आता। दमयन्ती की ऐसी दशा होती तो विदर्भ-नरेश मुझे खवर ज़रूर देते। दमयन्ती कहाँ है? उसको मेरे पास बुला तो लाओ।

सुनन्दा ने दमयन्ती से जाकर कहा---"सखी! तुमको मा बुलाती हैं।" दमयन्ती सुदेव ब्राह्मण को ठहराकर राजमाता से भेंट करने के लिए महल में गई।

राजमाता ने कहा---बेटी दमयन्ती! तुमने इतने दिन मुझको अपना परिचय क्यों नहीं दिया? आज मैंने सुनन्दा के मुँह से सब