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[ तीसरा
आदर्श महिला

हैं। मैं उस सारथि को देखना चाहती हूँ। सुदेव शर्मा एक बार कोशल देश में जाकर यह कह आवें कि 'दमयन्ती फिर स्वयंवर करेगी।' स्वयंवर का न्यौता पाकर जब महाराज ऋतुपर्ण विदर्भराज्य में आवेंगे तब उनके साथ वह सारथि ज़रूर आवेगा।

रानी---यह कैसे हो सकता है? शायद वह सारथि न भी आवे। राजा के सिर्फ़ एक ही सारथि तो होता नहीं।

दमयन्ती---"नहीं मा! इसके लिए मैंने एक तदबीर सोची है। कोशल देश यहाँ से बहुत दूर है। अगर सुदेव वहाँ जाकर कहे कि कल ही विदर्भ-राजकुमारी का स्वयंवर है तो राजा ऋतुपर्ण उस सारथि को ज़रूर साथ ले आवेंगे। मा! मैं जानती हूँ कि निषध-पति घोड़ा हाँकने में अपना जोड़ा नहीं रखते। एक दिन में, इतनी दूर, महाराज नल के सिवा और कोई नहीं आ सकेगा।" रानी ने बेटी की बात मानकर सुदेव को कोशल-देश में भेज दिया। सुदेव ने कोशल-राज के दरबार में जाकर कहा---कल, विदर्भ-राजकुमारी का फिर से स्वयंवर होगा।

स्वयंवर में पहुँचने के लिए महाराज ऋतुपर्ण तुरन्त तैयार हो गये। उन्होंने बाहुक को बुलाकर कहा---सारथि! अगर तुम एक ही दिन में मुझे विदर्भ-देश पहुँचा सको तो मैं तुमको मुँह माँगा इनाम दूँगा।

नल समझ गये कि यह सिर्फ़ दमयन्ती की चालाकी है। इसलिए वे अपनी बात के पूरी होने की आशा कर राज़ी हो गये और उन्होंने चुने हुए घोड़ों को रथ में जोता। रथ हवा की चाल से आकाश-मार्ग में जाने लगा।

राजा ऋतुपर्ण को बाहुक अनेक देश दिखाता गया। एकाएक घोड़ों