पृष्ठ:आदर्श महिला.djvu/१८

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आख्यान]
सीता


कहा---"जब आपके ऐसा पति, रामचन्द्र के ऐसा पुत्र और ऐसी राज-भक्त प्रजा है तब मुझे और क्या चाहिए?" दशरथ के आग्रह करने पर कैकेयी ने कहा---'अच्छा, यह मेरी थाती रहे; जब ज़रूरत होगी, माँग लूँगी।" राजा इसी से सन्तुष्ट हो गये।

आज युवराज रामचन्द्र के राज्याभिषेक के संवाद से नागरिक प्रजा के आनन्द की सीमा नहीं है। राज-महल तो आनन्द की लहरों से एक ऐश्वर्यमय नाटक-घर के समान शोभा पा रहा है। सर्वत्र आनन्द उमड़ सा रहा है। ऐसे समय एक कुब्जा दासी के जी में इतनी जलन क्यों है? सर्वत्र आनन्द और तृप्ति पूर्ण-भाव से बह रही है किन्तु इस अभागिनी का हृदय दुःख और अतृप्ति की आग में क्यों जल रहा है? वह और कोई नहीं, कैकेयी के नैहर की दासी कूबरी मन्थरा थी।

कूट-बुद्धि और ओछे मन के मनुष्य जगत् के किसी भले काम को अच्छी नज़र से नहीं देख सकते। कूबरी दासी मन्थरा भी रामचन्द्र के राज्याभिषेक में न जाने कितना अनर्थ देखने लगी। उसने सोचा कि राम राजा होंगे तो कैकेयी को राज-माता के अधीन होना पड़ेगा! भरत राजा के भाई रहकर उदासी से दिन काटेंगे। इतने दिन से जिसको रानियों में सिरमौर देखती हूँ, उसको अब राजा की सौतेली माँ के रूप में कैसे देखूँगी। यह सोचकर उसका हृदय टूक-टूक हो रहा था। उसने झटपट कैकेयी के पास जाकर कहा---"अजी भोलीभाली रानी! कुछ सोचा भी है कि आगे तुम्हारा क्या हाल होगा?" सीधी-सादी कैकेयी, दासी की इस बात का मतलब न समझकर, उसका मुँह ताकने लगी। मन्थरा बोली---'राम राजा होते हैं।" सुनते ही कैकेयी ने अत्यन्त प्रसन्न होकर अपने गले का, मोतियों का, हार उतारकर उसे पारितोषिक दिया। मन्थरा ने कैकेयी का