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[चौथा
आदर्श महिला


राजा—रानी! मेरा चित्त ठिकाने पर आ गया। अब मैं सब समझ गया हूँ। मुझे अब याद आ रहा है। तुम्हारी प्रेम से पवित्र पुकार माना मेरे आलसी शरीर में उत्साह भर रही है। तुम्हारी मधुर दृष्टि ने मुझे रास्ता दिखा दिया है। अब मुझे वही करना होगा जिससे तुम सुखी रहो।

रानी—अवश्य कीजिए। महाराज! आप आदर्श राजा हैं। आपके छत्र के नीचे असंख्य राजा प्रीति के मंत्र से मोहित होकर मिले हुए हैं। आप समुद्र की तरह गम्भीर हैं। दुनिया के मामूली मोहमद से आपका हृदय चञ्चल कैसे हो सकता है?

इस प्रकार की बातचीत में बहुत समय बीत गया। स्वामी की आज्ञा लेकर शैव्या, मन्दिर में जाने के योग्य कपड़े पहनकर, सहचरी और दासी की बाट देखने लगी।

थोड़ी देर में सहचरी और दासियाँ आ पहुँचीं। लाल रेशमी साड़ी पहने शैव्या रानी, तारापुञ्ज से समुज्ज्वल आकाशगङ्गा के मार्ग में विचरनेवाली सुराङ्गना की भाँति, मन्दिर की ओर चली। रानी के एक हाथ में, सोने के बने पुष्पपात्र में, तरह-तरह के सुगन्धित फूल और दूसरे हाथ में जल तथा पूजा की और सामग्री थी।

[२]

मन्दिर से लौटने पर शैव्या ने, आराम करने के कमरे में जाकर, देखा कि महाराज सो गये हैं। उसने, स्वामी के पैरों के नीचे बैठकर, धीरे से उनके दोनों पैर अपने सिर पर रखते हुए कहा—हे विधाता! स्वामी के ये चरण ही मेरे लिए परम तीर्थ हैं। अबलां के हृदय में शक्ति दो कि मैं इस परम तीर्थ के निकट वासना छोड़कर अमर फल पा सकूँ।