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आख्यान]
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शैव्या


यह कहते-कहते शैव्या की आँखों से दो बूँद आँसू टपककर राजा के चरणों पर जा गिरे।

इस बात का फ़ैसला करना सहज नहीं कि संसार में कौन छोटा है और कौन बड़ा। इसी तरह, इस बात का निश्चय करना भी बड़ा कठिन है कि किसका क्या काम है। रानी ने सोये हुए राजा के दोनों चरणों को हाथों में लेकर सिर पर रक्खा। कमल के समान चरणों की रज से सती का सेंदुर लगा हुआ माथा पवित्र हुआ तथापि राजा की नींद नहीं टूटी, किन्तु दो बूँद आँसू गिरते ही राजा जाग उठे। उन्होंने आँखे खोलकर देखा कि कमरे में शोभा की अपूर्व बाढ़ आ गई है।

राजा ने तुरन्त शय्या से उठ रानी को गले लगाकर कहा—शैया! तुम रोती क्यों हो? तुम्हारे एक बूँद आँसू ने मेरी सारी साधना को व्यर्थ कर दिया। आज दुपहर में तुम्हारी डबडबाई हुई आँखें देखकर मैंने जो शिक्षा पाई है उसे मैं हमेशा याद रक्खूँगा। देखो देवी, आज तुम्हारे इस आँसू की सफ़ाई से यह दिये की ज्योति मलिन-सी हो गई है।

रानी ने मधुर कण्ठ से कहा—नाथ! आप धन्य हैं और आपसे अधिक धन्य मैं हूँ कि जिसने आपके ऐसा देवियों को भी दुर्लभ स्वामी पाया है।

राजा में प्रेम-पूर्ण दृष्टि से रानी की ओर देखकर कहा—शैव्या! तुम्हारे समान स्त्री-रत्न को हृदय में धारण कर मैं धन्य हुआ हूँ, तृप्त हुआ हूँ।

रानी ने कहा—स्वामी! देवता के गले में फूलों की माला शोभा पाती है, इसमें देवता धन्य हैं कि फूलों की माला?

राजा ने प्रेम से कहा—दोनों ही धन्य हैं।

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