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आख्यान]
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शैव्या


उस दिन कोशल देश में आनन्द सैकड़ों धाराओं में बहने सा लगा। नगर के बीच नौबतख़ाने पर, मङ्गल-बाजे बजने लगे। नगर की स्त्रियाँ कुँवर के जन्म की ख़ुशी में प्रसन्नता से सोहर गाने लगीं। नये कुँवर के राज़ी-ख़ुशी रहने के लिए हरिश्चन्द्र ने ख़ज़ाना खोल दिया। ग़रीब-दुखिया, लँगड़े-लूले आदि बहुत धन पाकर असीस देने लगे। ज़मीन चाहनेवालों को ज़मीन मिली, अन्न चाहनेवालों को अन्न मिला। ब्राह्मणों ने हज़ारों गायों के साथ बहुत कुछ भेंट पाई। राजा ख़ुश होकर दोनों हाथों से दान करने लगे। क़ैदी छोड़े गये। वे राजकुमार की जय मनाते हुए प्रसन्नचित्त से घर गये।

'राजा हरिश्चन्द्र के पुत्र हुआ,' सुनकर देव-कन्याएँ जय-जय शब्द करने लगीं। नगर की स्त्रियों ने राजकुमार को देखने के लिए सौरीघर के द्वार पर बड़ी भीड़ लगा दी। ब्राह्मणों ने दोनों हाथ उठाकर नये जनमे हुए राजकुमार को हृदय से आशीर्वाद दिया। हरिश्चन्द्र के प्रेमी सामन्त राजा लोग क़ीमती रत्न आदि भेंटें देकर राजकुमार के हँसते हुए मुखड़े को देखकर ख़ुश हुए। नगर की प्रजा ने, राजकुमार के देखने को आकर, उस भारी भवन को प्रीतिपूर्ण बातों से गुँजा दिया। महाराज हरिश्चन्द्र ने देखा कि प्रजा की उस आनन्द-पूर्ण जय-जयकार से राज-महल की शोभा कई गुनी बढ़ गई है।

राजा और रानी दोनों लड़के के लुभावने रूप को एकटक देखने लगे।

शुक्लपक्ष के चन्द्रमा की तरह राजकुमार दिन-दिन बढ़ने लगा। हरिश्चन्द्र ने कुमार का नाम रोहिताश्व रक्खा। नाम-करण का दस्तूर हो जाने से राजकुमार और भी अधिक सुन्दर हो गया। धोरे-धीरे, बालक के सुन्दर मुँह में दो-एक दाँत निकल आये। बालक की तोतली