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[चौथा
‌‌‌‌‌‌‌‌आदर्श महिला

बातें सुनकर रानी और राजा मग्न हो जाते थे। बच्चे को देखकर उनका हृदय इस तरह उछलने लगा जैसे चन्द्रमा को देखकर समुद्र उछलता है।

एक दिन राजकुमार रोहिताश्व ने माता के साथ बग़ीचे में घूमते-घूमते कहा—माँ! मुझे हिरन का बच्चा मँगा दो, मैं उसे पालूँगा।

रानी शैव्या ने तुरन्त बग़ीचे की मालिन को हुक्म दिया कि कुमार के लिए एक सुन्दर हिरन का बच्चा ले आ।

रानी के हुक्म की तुरन्त तामीली करने के लिए मालिन बग़ीचे की दूसरी ओर पशुशाला को दौड़ी गई। वहाँ देखा तो हिरन का एक भी बच्चा नहीं। मालिन ने डरते-डरते आकर रानी से यह बात कही।

इधर कुमार रोहिताश्व मृग-छौने के लिए माता से हठ करने लगा।

रानी ने कहा—बेटे! यहाँ इस समय मृग-छौना नहीं है। मैं महाराज से कहकर तुम्हारे लिए हिरन का बच्चा मँगा दूँगी।

रानी ने हज़ार समझाया किन्तु कुमार रोहिताश्व ने मृग-छौने के लिए ज़िद नहीं छोड़ी। रानी के इशारे से बग़ीचे की मालिन एक सुन्दर चिड़िया ले आई। रानी ने उस चिड़िया को दिखाकर कहा—"बेटा! देखो, यह कैसी बाँकी चिड़िया है!" कुमार चिड़िया को पाकर मृग-छौने की बात भूल गया।

रानी शैव्या कुँवर को गोद में लेकर महल में आई। उसने राजा हरिश्चन्द्र से कहा—नाथ! आज बग़ीचा घूमते समय में बड़ी मुश्किल में पड़ गई थी।

हरिश्चन्द्र ने मुश्किल की बात सुनकर पूछा—रानी, किस मुश्किल में पड़ी थीं?

शैव्या ने सब कह सुनाया। हरिश्चन्द्र ने कुँवर का मुँह चूम-