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आख्यान]
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शैव्या

में सेना चारों ओर शोर मचाती फिरती है किन्तु हज़ार उपाय करने पर भी कहीं वैसा मृग नहीं मिलता। राजा सोच रहे थे कि 'यहाँ बहुतसे हिरन रहते हैं किन्तु आज न जाने कैसा बुरा दिन है कि एक भी हिरन नहीं दिखाई देता।' इतने में एक सुन्दर चित्रित मृग राजा के पास से भागता हुआ देख पड़ा। राजा ने उस पर बाण छोड़ा, पर वह उसके लगा नहीं। अचूक निशाना लगानेवाले हरिश्चन्द्र सोचने लगे— हैं! यह क्या हुआ? आज मेरा निशाना क्यों चूक गया? न-जाने आज मेरे भाग्य में क्या बदा है!

अचानक उन्होंने सुना कि कोई उस वन में उनका नाम ले-लेकर दुःख-भरी आवाज़ से चिल्ला रहा है। इससे परोपकारी राजा का चित्त अकुला उठा। वे तुरन्त उधर को दौड़े जिधर से रोने का शब्द आ रहा था। राजा ने देखा कि बहुत ही सुन्दर पाँच स्त्रियाँ लताओं में बँधी हैं और छुड़ाने के लिए उनको पुकार रही हैं। उनके निराशा झलकानेवाले उदास मुखड़ों को देखकर हरिश्चन्द्र उनका बन्धन खोलने लगे। राजा के शरीर की कूवत मुनियों की मानसिक शक्ति के आगे आज पहले-पहल परास्त हुई। राजा जब भरसक उपाय करके भी बन्धन नहीं खोल सके तब उन्होंने तलवार से लता-बन्धन काटकर अप्सराओं का उद्धार किया। बन्धन से छूटी हुई अप्सराएँ एहसान से दब गईं। उन्होंने हाथ जोड़कर कहा—महाराज हरिश्चन्द्र! आप भूल न जाइएगा। हम अप्सरा हैं। देवराज इन्द्र के शाप से इस पृथिवी पर आकर शाप का फल भोगती थीं। आज आपके दर्शन से हमारा छुटकारा हो गया। हम आशीर्वाद करती हैं, आपका मङ्गल हो। महाराज! धर्म ही सबका सहायक है। सुख-दुःख में धर्म और सत्य पर दृष्टि रखिएगा। अब बिदा होते समय इस शुभ मुहूर्त में हम लोगों की ईश्वर से प्रार्थना है कि आपके यश की ज्योति से