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[चौथा
आदर्श महिला

[९]

राजकुमार रोहिताश्व को गोद में लिये हुए शैव्या ब्राह्मण के घर गई।

ब्राह्मण की स्त्री ने देखा कि बूढ़ेराम एक देवी को दासी बना लाये हैं। दासी के साथ एक राजकुँवर-सा बच्चा है। तो क्या यह दासी का पुत्र है? मनुष्य में इतना रूप भी कहीं हो सकता है? इस प्रकार सोचते-सोचते ब्राह्मणी ने उस दासी की ओर रोषभरी निगाह से देखकर अकेले में ब्राह्मण से कहा—"यही दासी है? तुम्हारे इस बुढ़ापे को क्या फिर जवानी की हवा लगी है?" ब्राह्मण ने पत्नी के मुँह से ऐसी कड़ी दिल्लगी सुनकर बड़े दुःख से कहा—ब्राह्मणी! तुम यह क्या कह रही हो? स्त्री में विश्व-नाथ की अपार दया का पूर्ण विकास होता है; स्त्री अन्नपूर्णा-रूप में विश्व के राजा की शुभ आज्ञा का पालन करती है; स्त्री ने माता के रूप से दोनों हाथों में प्रेम और अमृत लेकर इस जगत् को गोद में ले रक्खा है। बड़े शोक की बात है कि तुम स्त्री होकर भी स्त्री की मर्यादा को नहीं समझती।

ब्राह्मण ने दासी का सब हाल ब्राह्मणी को कह सुनाया। ब्राह्मणी ने सुनकर सोचा कि यह ऐसे सुन्दर रूपवाली स्त्री कौन है। स्वामी की बात रखने के लिए स्त्री का ऐसा अपूर्व आत्मदान तो पहले कभी नहीं सुना था। सब सोच-विचारकर ब्राह्मणी दासी के विषय में बुरा ख़याल नहीं रखना चाहती थी तो भी उसके जी में, न जाने क्यों, बुरी चिन्ता हो आती थी। राजकुमारों को लजानेवाले दासी के उस सुन्दर बच्चे को देखकर ब्राह्मणी के हृदय में जब-तब वात्सल्य-भाव उठता। ब्राह्मणी सोचती कि शक्ति-पुत्र कार्तिकेय को देखकर कृत्तिका के स्तनों से दूध निकला था; दासी के इस पुत्र को देखकर मुझ बिना पुत्रवाली के चित्त में भी वात्सल्य की धारा बहती है, तो दासी का यह पुत्र क्या किसी देवता का बालक है? इस प्रकार अस्थिर-चित्त से वह