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आदर्श महिला


राहु-द्वारा उसके ग्रसे जाने पर मुझे जो कष्ट होगा उसकी कल्पना करने से भी मुझे भय होता है। मैं अपनी इच्छा से अपना कलेजा निकालकर फेंक दे सकता हूँ किन्तु तुम्हारा कोई कष्ट मैं नहीं देख सकता। इसी से कहता हूँ कि तुम माताजी के पास, उनकी हताशा में आशा की तरह, रहकर मेरा आनन्द बढ़ाओ।

सीता ने सुनकर मान से कहा--आर्य-पुत्र! आपने क्या मुझे विलास की ही चीज़ समझा है? यह समझा है कि मैं आपके जीवन सुख की ही संगिनी हूँ? क्या आप मुझे दुःख में संगिनी नहीं देखना चाहते? क्या आप नहीं जानते कि स्त्री का जन्म स्वामी के सुख-दुःख से मिला हुआ होता है? स्वामी साथ हो तो जंगली जानवरों से भरा हुआ वन ही साध्वी स्त्री के लिए नन्दन-वन है; आपसे आप उपजे हुए वन-फल ही उसके लिए राजभोग हैं; शीतल नदी-नीर ही उसके लिए सुवासित पीने की सामग्री है; घास ही उसके लिए अनमोल कोमल शय्या और जंगली फूलों की सुगन्ध ही उसके लिए विलास-सामग्री है। आपकी सेवा करने से मुझे जो तृप्ति होगी वैसी तृप्ति राजधानी का अपार सुख भोगकर भी न होगी। इसलिए आप मुझे अपने साथ ले चलें। आप ही साक्षात् राजश्री हैं। आपके वन में जाने से वह वन ही आपके तेज से स्वर्ग-समान हो जायगा और यह राजधानी, भयंकर प्रेतपुरी की तरह, मेरे लिए अशान्तिदायक हो जायगी। आपका मधुर मिलन ही मेरे लिए स्वर्ग-सुख है, और आपकी विरह-यन्त्रणा मेरे लिए हलाहल विष है। आप मुझे छोड़कर वन को न जाइए। नाथ! मैं आपके साथ वन को चलकर आपके क्लेश का कारण नहीं हूँगी। आपका पवित्र संग ही मेरे जीवन की कामना है। यदि मैं आपके साथ वन में घूमते-घूमते सूर्य की तेज़ किरणों से थक जाऊँगी तो आपका यह प्रेम-पवित्र मुँह