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आख्यान]
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शैव्या

गया। वह इतनी कौड़ियाँ कहाँ पावे? गहरे दुःख के समय मनुष्य को जीवन के बीते हुए सुखों की याद आती है। इससे उसका चित्त व्याकुल हो जाता है। शैव्या को पुरानी बातों की याद हो आई। कौड़ियों का कुछ उपाय न देखकर उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बह चली।

डोम ने कहा—क्यों नाहक शोक करती हो? पाँच गण्डा कौड़ियाँ जल्दी दो। देखती नहीं हो, आकाश कुछ साफ़ हो गया है, और वर्षा भी रुक गई है। फिर आँधी या पानी के आने से यह मरघट और भी विकट हो जायगा। इसलिए अब देर मत करो।

स्त्री ने कहा—"डोम! मैं कौड़ियाँ कहाँ पाऊँ? मैं तो खरीदी हुई दासी हूँ। तुम्हारे पैर पड़ती हूँ, चाण्डाल! मेरी विपद में तुम सहायता करो।" कुछ देर बाद, हृदय के वेग को दबाकर उसने कहा—हाय नाथ! तुम कहाँ हो? देखते नहीं कि पाँच गण्डे कौड़ियों के लिए तुम्हारे पुत्र की क्रिया रुकी हुई है।

डोम ने पूछा—भद्रे! क्या तुम्हारा निठुर पति अभी ज़िन्दा है?

स्त्री ने घबराकर कहा—चाण्डाल! तुम किसकी निन्दा करते हो? तुम मेरे स्वामी को निठुर कहते हो? ख़बरदार! ऐसा मत कहना मेरे स्वामी महाराजाधिराज हैं, मेरे स्वामी बड़े भारी दानी हैं, मेरे स्वामी दीनों को शरण देते हैं, वे प्रजा को हृदय से चाहते हैं, वे बड़े प्रेमी हैं, मनुष्य के चोले में साक्षात् देवता हैं। डोम! बिना जाने, तुम उनको निठुर क्यों कहते हो?

डोम ने चौंककर पूछा—तब तुम्हारी यह हालत क्यों है? तुम ऐसी असहाय अवस्था में, मरघट में, अकेली क्यों आई?

स्त्री ने दुःखभरे स्वर में कहा—वह बहुत बड़ी कहानी है।