पृष्ठ:आदर्श महिला.djvu/२३७

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पाँचवाँ आख्यान
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चिन्ता
[१]

पुराने ज़माने में भारतवर्ष में चित्रसेन नामक बड़े प्रतापी राजा राज्य करते थे। वे जैसे दाता थे वैसे ही धर्मात्मा भी थे। वे हुकूमत करने में साक्षात् इन्द्र के तुल्य, न्याय करने में मूर्तिमान धर्म और शास्त्रों के ज्ञान में प्रत्यक्ष बृहस्पति के समान थे। राजाओं के योग्य इन गुणों के होने से राजा चित्रसेन की प्रजा के हृदय में देवता को तरह पूजा होती थी।

राजा के वैभव की हद नहीं थी। सतमंज़िला महल था। नाना प्रकार के रत्नों से भरा उनका वह राजभवन इन्द्रावती से भी बढ़कर जान पड़ता था। सैकड़ों दास-दासियाँ राजा की आज्ञा मानने को सदा मुस्तैद रहती थीं। मतलब यह कि राजधानी सुख, शान्ति और सिलसिले का काम होने से आनन्द का घर हो रही थी।

राजा चित्रसेन की इकलौती बेटी का नाम चिन्ता था। चिन्ता संसार को सतानेवाली चिन्ता नहीं थी, किन्तु यह संसार के मन को मोहित करनेवाली चिन्ता थी। जो कोई चिन्ता की सुन्दर देह में अनोखी लुनाई और शोभा देखता वह कहता—अहा! सुघराई