खेल भूलकर अब भगवान् के मधुर भाव में मस्त है। लड़की के इस भाव को देखकर राजा प्रसन्नता से बग़ीची में घूमे; फिर वे राजकुमारी के साथ राज-भवन को लौट आये।
[३]
चिन्ता अब लड़की नहीं है। उसके विवाह के लिए देश-देश में ब्राह्मण भेजे गये। राजा-रानी सोचने लगे कि चिन्ता जैसी सुशीला और भक्तिमती है वैसा उसके योग्य वर कहाँ मिलेगा।
चित्रसेन के भेजे हुए ब्राह्मण देश-देश में चिन्ता के योग्य राजकुमार को ढूँढ़ने लगे, किन्तु कहीं उसके लायक़ वर नहीं मिला। अन्त को एक दूत प्राग्देश में [१]*चित्ररथ राजा के यहाँ पहुँचा। उसने देखा कि राजधानी का ऊँचा फाटक राज्य के ऐश्वर्य को बतला रहा है। राजा के दबाव से प्राग्देश नियम और बन्दोबस्त का घर मालूम हुआ। दूत ने वहाँ के राजकुमार की शूरवीरता, विद्वत्ता आदि गुणों का वर्णन सुनकर सोचा कि चित्रसेन की बेटी चिन्ता का स्वामी होने के योग्य यही है।
दूत ने राज-सभा में जाकर विधि से अभिवादन करके राजा चित्ररथ से कहा—महाराज! राजा चित्रसेन अपनी परम सुन्दरी बेटी चिन्ता के योग्य वर ढूँढ़ रहे हैं। आपके पुत्र सुवराज श्रीवत्स बालिग़ हुए हैं। अतएव कृपा करके चित्रसेन की लड़की के साथ राजकुमार श्रीवत्स का विवाह सम्बन्ध पक्का कीजिए।
अपने योग्य पुत्र का विवाह करने के लिए राजा चित्ररथ रूप-गुणवाली कन्या की खोज में थे ही। आज दूत से राजकुमारी चिन्ता का समाचार पाकर बड़ी प्रसन्नता के साथ वे इस बात पर राज़ी हो गये। दूत ख़ुशी से राजा चित्रसेन के राज्य को लौट गया।
- ↑ * ब्रह्मपुत्र और भागीरथी नदी के बीच का स्थान।