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आदर्श महिला

है किन्तु भगवान् के इस सुख से भरे राज्य में सुख की ही बहार है। चारों ओर आनन्द और तृप्ति है, किन्तु मनुष्य अपने कर्मों के दोष से सुखी नहीं हो सकता और पृथिवी को भी दुःखों से भरी देखकर आँसू बहाता है। प्रिये! कर्मभूमि पृथिवी पर अपना कर्तव्य पालने में ही सुख है। जो अपना कर्तव्य पालते हैं उन्हीं भाग्यवानों के लिए पृथिवी का सारा आनन्द है; निराशा या दूसरी कोई बाधा उनके पास नहीं फटकने पाती। हम लोग इस मर्म को नहीं समझते, इसी से इतना कष्ट पाते हैं। भगवान् में प्रीति करना, आत्मज्ञान को पाने का उपाय करना और जीवों पर दया करना ही मनुष्य का मुख्य कर्त्तव्य है। इस शान्त, शीतल रात में तुमने मुझे जो सबक़ दिया है उससे मैं एक मधुर भाव में डूब गया हूँ। मेरी प्रार्थना है कि तुम भगवान् की अपार कृपा को पा जाओ और आर्य स्त्री का गौरव-पूर्ण आदर्श-स्थल हो जाओ।

चिन्ता ने स्वामी के मुँह से यह बात सुनकर सिर नीचा कर लिया। उसने कुछ देर में कहा—"नाथ! मैं अशिक्षित हूँ। मैंने कुछ नहीं सीखा है। पिता के अटूट धन-दौलत और लाड़-चाव में पलकर मैं उचित शिक्षा नहीं पा सकी। आप देवता हैं, मेरी अज्ञानता को दूर कर दें; हृदय में ऐसा बल दें कि जिससे दुःख या कष्ट आकर कभी मुझे कातर न बना सकें—मैं स्त्री होकर स्त्रीत्व के बनाये रख सकूँ। नाथ! बालपन में पिता के घर सीता, सावित्री, दमयन्ती आदि कितनी ही पवित्र स्त्रियों का जीवन-चरित्र मैंने सुना था। मैं खूब जानती हूँ कि कठिन दुःख में पड़ने पर भी उन्होंने हृदय की दृढ़ शक्ति से किस प्रकार दुःख के ग्रास से छुटकारा पाया और उन्होंने शान्ति की गोद में किस प्रकार आसरा लिया था; मैं यह भी जानती हूँ कि पातिव्रत के बल से वे किस प्रकार आदर्श सती