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[पाॅंचवाॅं
आदर्श महिला

फ़ैसला न होते देखकर शनि ने कहा—"चलो, प्राग्‌देश में श्रीवत्स नाम के एक बड़े धर्मात्मा राजा हैं, उनसे हम इसका फैसला करा लावें।" लक्ष्मी ने सोचा कि 'जो राजा न्याय की प्रत्यक्ष मूर्ति हैं, जो धर्म के एक आधार हैं उनको भी शनि का मुँह देखना पड़ेगा!' किन्तु अपनी मर्यादा के मोह से उन्होंने उस पवित्र हृदयवाले राजा के भविष्य का ख़याल नहीं किया। सोचा—भाल लिखी लिपि को सक टार?

राजा श्रीवत्स राज-दरबार में न्याय के काम में लगे हैं। सभासद लोग राजा के गहरे शास्त्र-ज्ञान और न्याय के विषय में चर्चा कर रहे हैं। इतने में लक्ष्मी और शनि राज-दरबार में हाज़िर हुए।

राजा ने स्वर्ग-लोक-वासिनी लक्ष्मी को और सूर्य के पुत्र शनैश्चर को अचानक राज-दरबार में आते देखकर उनका यथायोग्य आदर किया। फिर अचरज से पूछा—"आप लोग स्वर्गधाम छोड़कर किस मतलब से धरती पर आये हैं?" शनि ने कहा—हम दोनों में इस बात पर झगड़ा छिड़ गया है कि 'कौन बड़ा है,' तुमसे इसका फैसला होने की आशा करके हम लोग तुम्हारे पास आये हैं । तुम इसका वाजिब फ़ैसला कर दो।

श्रीवत्स—देव! देवताओं का फैसला और मनुष्य करे! यह तो अनहोनी बात है।

शनि—राजा! शक्तिमान मनुष्य देवता से कम कैसे हैं? तुममें यह शक्ति है इसलिए हम लोगों का विश्वास है कि तुम्ही हम लोगों का फैसला कर सकोगे।

श्रीवत्स–देव! यह पहेली मेरी समझ में नहीं आती। देवताओं का फ़ैसला मनुष्य कैसे करेगा? क्षुद्र-ज्ञानवाला मनुष्य देवता के देवत्व को कैसे जानेगा?