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आदर्श महिला

है। हमें इस समय अपने-अपने लोकों को जाने दो कल सबेरे फिर तुम्हारे यहाँ आना है।

राजा श्रीवत्स बड़े संकट में पड़े। देवता-देवता में झगड़ा है और मनुष्य बनाया गया है उस झगड़े का फैसला करनेवाला! बड़ी झंझट है! यही सोचते-सोचते, दरबार को बरख़ास्त कर, राजा महल में गये।

[६]

चिन्ता ने राजा के मुख पर किसी गहरी चिन्ता की छाया देख कर आतुरता भरे स्वर में पूछा—नाथ! आज आपको इतना उदास क्यों देखती हूँ? आप महल में आकर प्रसन्न मन से कुछ बोलते नहीं हैं। माथे पर गहरी चिन्ता की रेखा पड़ी हुई है; कामदेव के धनुष को मात करनेवाली ये भौंहें तनी हुई हैं; नीले कमल से नेत्रों की दृष्टि बेठिकाने है। नाथ! यह अनर्थ की सूचना क्यों देख पड़ती है? आपकी प्रजा किसी आधि-व्याधि से पीड़ित तो नहीं है? राज्य पर किसी शत्रु ने चढ़ाई तो नहीं की है?

श्रीवत्स—देवि! यद्यपि इस समय कोई अनिष्ट नहीं हुआ है तो भी ऐसा जान पड़ता है कि भयावना अभाग्य मुँह फैलाकर हमारे राज्य को और उसके साथ-साथ हमें-तुम्हें दोनों को निगल जाने के लिए तैयार है। देवी! मुझे भविष्य नहीं सूझता।

श्रीवत्स ने चिन्ता देवी से सब हाल कह सुनाया। सब सुनकर चिन्ता ने राजा से कहा—स्वामी! इस मामूली सी बात के फैसले के लिए आप इतना क्यों घबरा गये? फ़िक्र छोड़िए, मैं इसका समाधान कर दूँगी।

राजा ने अचरज कर कहा—रानी! तुम कहती क्या हो? मेरे बड़े-बड़े मंत्री जिस नाज़ुक मामले के फैसले का रास्ता नहीं