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आख्यान]
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चिन्ता

निकाल सके, सैकड़ों मुसाहब जिस उलझन में सिर पर हाथ धरकर सोचते रह गये—यहाँ तक कि मैं भी इतनी देर सोच करके जिस मसले को हल नहीं कर सका—उसका फैसला महल में रहनेवाली तुम कैसे कर सकोगी?

चिन्ता—नाथ! यह तो मामूली बात है। इसका फैसला करना कुछ मुश्किल नहीं। समय बहुत बीत गया। आप नहाकर भोजन करें। आप विश्वास रक्खें, मैं इसका फै़सला कर दूँगी।

राजा की छाती से एक भारी बोझ-सा उतर गया।

खान-पान से छुट्टी पाकर राजा पलँग पर लेटे हुए हैं। चिन्ता रानी पैरों की ओर बैठकर पङ्खा झल रही हैं। इतने में राजा ने कहा—प्यारी! तुम इस नाजुक मामले का फै़सला कैसे करोगी? कुछ मेरी समझ में नहीं आता। मुझे हर घड़ी इसी का ध्यान है। तुम अब बताकर मेरे चित्त को शान्त करो।

चिन्ता ने कहा—स्वामी! आप इतनी फ़िक्र क्यों करते हैं? आपको कुछ भी कहना नहीं पड़ेगा। देवता लोग अपना निर्णय आप ही कर लेंगे। कल, शनि और लक्ष्मी के आने से पहले ही आप अपने सिंहासन के दाहिनी ओर एक सोने का और बाईं ओर एक चाँदी का सिंहासन रखवा दीजिएगा। शनि और लक्ष्मी के हाथ से ही फैसला हो जावेगा। उनमें जो बड़ा होगा वही बड़प्पन के कीमती आसन पर बैठेगा। आपको कुछ बोलना भी नहीं पड़ेगा; क्योंकि इज्ज़त आप सबको अपना आसन दिखा देती है। फिर वे तो देवता हैं।

राजा ने चिन्ता की यह चतुराई की बात सुनकर प्रसन्नता से कहा—देवी! मेरे हृदय-राज्य की रानी! तुम साक्षात् मीमांसा हो या मेरे पूर्वजन्म के पुण्य तुम्हारी सुरत में मेरी सहायता कर रहे हैं!