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आदर्श महिला

आज तुमने मानवी रूप से, प्रेम-पूर्ण हाथ से मेरे संकट को दूर कर दिया और तुमने मुझे प्रेम-पूर्ण नये राज्य का राजा बना दिया।

चिन्ता ने मुसकुराकर कहा—अभी यह पण्डिताई रहने दीजिए। इसमें बहुत कुछ सोचने-समझने की बात है। आप सहज में इसमें छुटकारा नहीं पावेंगे। अपनी इज्ज़त के भूखे देवता इस झगड़े का फैपला अपने आप कर तो लेंगे परन्तु उनमें से जो लोगों के सामने लज्जित होगा—जिसे नीचा देखना पड़ेगा—उसका भयङ्कर कोप आपके ऊपर अवश्य होगा। सर्वनाश मानो आज देवी-देवता का रूप धरकर तुम्हारे सामने खेल रहा है! किन्तु इस समय उसके सोचने की ज़रूरत नहीं।

राजा को यह सुनकर बहुत फ़िक्र हुई। वह मुलायम सफे़द शय्या उनको काँटे-सी गड़ने लगी। दयारूपिणी चिन्ता देवी के झले हुए पंखे की मधुर बयार गरम लू के समान मालूम होने लगी। हारे हुए देवता के रोष की कल्पना करके वे घबरा उठे।

प्रेम में चतुर चिन्ता देवी ने राजा की कातरता को समझकर कहा—राजन्! खेद छोड़िए। आफ़त में अधीर होना आपके ऐसे स्थिर-बुद्धिवाले पुरुष के लिए कभी उचित नहीं है। आफ़त में घबरा जाने से वह मनुष्य को और भी जकड़ लेती है। दुःखों से जलती हुई इस धरती पर धीरज का हथियार लेकर मनुष्य को आफ़त का सामना करना पड़ेगा। आप राजा हैं, प्रजा के प्रत्यक्ष देवता हैं, देश के मङ्गल हैं और साधु के आदर्श हैं। होनहार के ख़याल से अधीर होना आपको लाज़िम नहीं। विधाता ने जो लिख दिया है वह तो होगी ही। होतव्यता के साथ लड़ने की शक्ति मनुष्य में नहीं है; क्योंकि मनुष्य तो कर्म के फल का दास है। प्रत्येक काम मनुष्य के पूर्व जन्म के कर्मफल की सिर्फ सूचना है।