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आदर्श महिला


बहुतसी बातचीत हो चुकने पर शनि ने कहा-महाराज! तुम्हारी आव-भगत से हम बहुत प्रसन्न हुए। आशा है, अब हम लोगों के झगड़े का तुम फैसला कर दोगे।

श्रीवत्स का मुँह सूख गया। भयानक विपद् की शङ्का से उनके मुँह से बात न निकली। तब शनि ने फिर कहा—क्यों महाराज, इस बात का कुछ उत्तर क्यों नहीं देते? कल तुमने आज फै़सला कर देने का वादा किया था, अब अपनी वह प्रतिज्ञा पूरी करो।

राजा ने समझा कि सत्यानाश सिर पर आ गया, सुख की गृहस्थी में आग लग गई, अब सोचने विचारने का मौक़ा नहीं है। उन्होंने कहा—देव! भला देवता का विचार मनुष्य क्या करेगा! मनुष्य में इतनी शक्ति कहाँ? जो हो, जब आप लोगों ने मुझे वह अधिकार दिया ही है, तब मेरी राय में यह आता है—आप लोग, ही विचार कीजिए कि आप लोगों में कौन बड़ा है।

शनि—महाराज! चतुराई से काम नहीं होगा। तुम्हारी वचन-चातुरी को परखने के लिए हम लोग यहाँ नहीं आये हैं। जो तुम इसका समाधान नहीं कर सकते थे तो तुमने पहले ही से साफ़-साफ़ क्यों न कह दिया। कल से इतनी बातें क्यों बना रहे हो?

शनि की बात सुनकर श्रीवत्स चौंक पड़े। वे समझ गये कि मेरी इस दीनता से अपनी इज्ज़त चाहनेवाले शनैश्चर प्रसन्न होने के नहीं। अब राजा ने विनती कर कहा—हे सूर्य के पुत्र! यह विशाल जगत् प्रीति के एक गुप्त आकर्षण से चल रहा है। यहाँ प्रीति का आकर्षण शासन की त्यौरी से कहीं बढ़कर ताक़त रखता है। इस संसार में जो प्रीति-दान दे सकता है वही बड़ा है। दबाव से मनुष्य वश में नहीं होता, प्रेम की छाया से ही मनुष्य धन्य होता है। अब आप ही विचार कीजिए कि आप लोगों में कौन बड़ा है।