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[पाॅंचवाॅं
आदर्श महिला

मँगाकर भूखों मरती हुई प्रजा में बँटवाया। इससे प्रजा का बहुत कष्ट घटने तो लगा, किन्तु लगातार कई वर्ष वर्षा और उपज न होने से देश में भयानक दुर्भिक्ष पड़ा। चोरों और डाकुओं का दल बना। जान बचाने के लिए, सब लोग अधर्म के विचार को ताक़ में रखकर दूसरों की चीज़ें चुराने लगे। राजा का ख़ज़ाना खाली हो गया। अब प्रजा भूखों मरने लगी। देश में ख़ून बरसने लगा। चारों ओर बुरे लक्षण नज़र आने लगे। देश रेगिस्तान बन गया। कहीं ज़रा भी छाया या शीतलता नहीं। चारों ओर ऐसा मालूम होता है कि कोई खाने को दौड़ता सा है। भूख के मारे लोग जोही सोही चीज़ें खाकर बीमार पड़ने लगे। देश में महामारी फैल गई। प्रजा बे-मौत मरने लगी।

देश की यह दशा देखकर राजा-रानी का हृदय शोक से भर गया। राजा ने कहा—रानी! यह दृश्य अब देखा नहीं जाता। पुत्र-समान प्रजा की यह मर्म को छेदनेवाली चिल्लाहट और देश का यह भयानक दृश्य मेरे कलेजे को बेध रहा है। देवी! किसी तरह यहाँ से निकल चलना ही ठीक है।

रानी—महाराज! मुझसे भी यह मरघट का सा भयावना दृश्य देखा नहीं जाता। कहिए, कहाँ चलने का विचार है?

राजा—रानी! मेरी इच्छा है कि तुम इस समय कुछ दिनों के लिए मायके चली जाओ। मैं जहाँ शान्ति पाऊँगा—नदी के किनारे मैदान या घने जंगल में—वहीं जाऊँगा। शनि की दृष्टि बारह वर्ष रहती है। बारह वर्ष पूरे होने पर मेरी दशा फिर पलटेगी। तब मैं देश को लौटूँगा। तब तक तुम नैहर में रहना। इस समय मेरे साथ रहकर कष्ट पाने की क्या ज़रूरत है?