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आख्यान]
२४५
चिन्ता

हृदय में अचरज है और रानी के हृदय में यह आशङ्का है कि न जाने आज भाग्य में क्या हो।

राजा और रानी ने अचानक नूपुरों की आवाज़ सुनी। इस जङ्गल के रास्ते में, इस अँधेरी रात में, किसके नूपुरों का शब्द है! राजा और रानी ने देखा कि एक बालिका स्वर्गीय किरण से रास्ते में उजेला किये उनके आगे-आगे जा रही है।

राजा ने पूछा—"माँ! तुम कौन हो? इस अँधेरी रात में, हम लोगों के रास्ते में, आगे-आगे रोशनी दिखाती चल रही हो?

वीणा को मात करनेवाले सुर में उत्तर मिला—श्रीवत्स! मैं लक्ष्मी हूँ। मैं सदा तुम्हारे साथ हूँ। इस अँधेरे में तुम लोग रास्ता भूलकर कष्ट पा रहे थे, इससे मैं रास्ता दिखाने आई हूँ।

श्रीवत्स—माँ, मैं सचमुच रास्ता भूल गया हूँ। माता! क्या मेरे जीवन का रास्ता सदा के लिए छूट गया?

लक्ष्मी—नहीं बेटा! तुम उस रास्ते को नहीं भूले। बग़ल में यह रोशनी की बत्ती है, यही तुमको रास्ता दिखावेगी; आशा को तोड़ो मत। कर्त्तव्य का पालन करते रहो, ग्रह-पीड़ा से घबरा जाना पुरुष का काम नहीं। होतव्यता के साथ झगड़ा करके मनुष्य को असाध्य साधन करना पड़ता है। तुम इस शक्तिमयी की सहायता से असाध्य (जो सिद्ध नहीं होता, उसे) साधने को तैयार हुए हो। बेटा! और तो क्या कहूँ, देवताओं की देवियाँ भी उत्सुकता से तुम्हारी इस साधना की सिद्धि देखने के लिए बाट जोह रही हैं। वत्स! निराश मत हो! ग्रह की पीड़ा को ब्रह्मा भी दूर नहीं कर सकते। तुमको बारह वर्ष तक यह कष्ट भोगना ही पड़ेगा। इसके लिए चिन्ता मत करना। हर घड़ी शुभ अवसर की बाट देखते रहना।

इतने में चन्द्रमा का उदय हुआ। अँधेरे पाख के चन्द्रमा की